हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 495

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

सत्ताईस अक्षर या उससे अधिक अक्षरों वाले ‘दंडक’ की चार जातियों, चंडवृष्टि प्रताप, अर्णव, व्याल और जीमूत, के उदाहरण इस ग्रन्थ में मिलते हैं।

लेखक ने कणनिंद की एक प्रति देखी है जो दक्षिण के गोलकुंडा नगर में लिखी गई है।[1] यह प्रति वृन्दावन में श्री ब्रजवल्लभलाल गोस्वामी के पास हैं।

2. उपसुधानिधि - सत्तर श्लोकों के इस छोटे से स्तोत्र ग्रन्थ में श्रीराधा के स्वरूप का सुन्दर वर्णन किया गया है। यह प्रकाशित हो चुका है। इसकी भाषा प्रसादगुण युक्त और कथन-शैली सुलझी हुई है।[2] इस पर श्री चन्द्रलाल गोस्वामी की व्रजभाषा पद्य टीका प्राप्त है।

3. राधानुनय -विनोद काव्य- उपसुधानिधि जितना सरल और भक्तिभावपूर्ण है उतना ही यह ग्रन्थ क्लिष्ट और काव्यकलापूर्ण है। मालूम होता है कि इसकी रचना ही काव्य-कला के प्रदर्शन के हेतु हुई है। इसके अनेक श्लोकों में श्रीहर्ष के नैषध-चरित जैसी आकर्षक और चातुर्यपूर्ण शब्दयोजना दिखलाई देती है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कणनिंदाभिघो ग्रंथों व्यलिखद्वाडवोत्तम:। श्रीवत्सराज सन्मान्यो गोलकुंडा पुरे वरे ।।
  2. श्रृंगारस माधुर्य सार सर्वस्व विग्रहे। नमोजगद्वेद्ये वृन्दावन महेश्वरी।। यस्याः पररसानंदा कोटयंशेनापि नो समाः। सर्वें प्रेमानंदरसाः सैवत्वं स्वामिनी मम।। सर्वेधर्मा ममाधर्मा सर्वसाधुमसाधु मे। न यत्र लभ्यते राधे त्वत्पादाम्बुज माधुरी।।
  3. मृगदृशं सुरत श्रम जन्मना परसिरस्तनयोः कलितोम्बुना। कुसुम संतति संतत संगिना न मरुतामरुतामगमन्नसः।। (सर्ग 4-6) हृदयमस्फटदंग निघर्षणान्मघुलिहामधि केतकि केतकी। यदवलोकनतोपि तु रागिणां तदमितादमिता रसपद्धतिः।। (सर्ग 4-8)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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