हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 484

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

वृंदावन महिमामृत किंवा वृंदावन शतकों में प्रबोधानंद जी ने अपनी इस निष्‍ठा का बड़ा सुंदर और विशद गान किया है। कहा जाता है कि इन्‍होंने सौ शतकों की रचना की थी किंतु अब 17 शतक ही प्राप्‍त है। यह कुल शतक सन् 1933-37 में प्रकाशित हुए थे[1] श्री श्‍मामलाल हकीम ने वृंदावन से प्रथम चार शतक नागरी अक्षरों में हिंदी भाषांतर सहित प्रकाशित किये हैं। इनमें से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम और सत्रहवें शतकों में श्री चैतन्‍य वंदना अथवा श्री चैतन्‍यस्‍मरण के श्लोक लगे मिलते हैं। चतुर्थ और पंचम शतकों में एक ही स्‍मरण’ श्‍लोक दोहरा दिया गया है’।[2]सत्रहवें शतक में ‘वंदना’ के दो श्‍लोक हैं।

किंतु इन शतकों में वृंदावन और उससे संबंधित रासविलास का वर्णन जिस प्रकार से हुआ है वह इनको गौड़ीय संप्रदाय के किसी व्‍यक्ति द्वारा रचित सिद्ध नहीं करता। इनमें संपूर्णतया वृंदावन रसरीति का अनुसरण किया गया है। राधा वल्‍लभीय रस-पद्धति के निम्‍नलिखित मौलिक तथ्‍य इस रचना के आधार बने हुये हैं।

भावार्थ:- वृंदारण्‍य में कीड़ा बनकर भी रहना मुझे अन्‍य स्‍थानों में चिदानंदमय शरीर धारण करके रहने की अपेक्षा श्रेष्‍ठ लगता है; यहाँ परम रंक बनकर रहना अन्‍य स्‍थानों में अनन्‍त ऐश्वर्यशाली बनकर रहने की अपेक्षा अच्‍छा है। वृंदावन में मैं चाहे सर्वथा भजन-शून्‍य होकर रहूँ किंतु अन्‍य-स्‍थानों में गोपीजनवल्‍लभ के चरणकमल–रस के आस्‍वाद सुख से पूर्ण बनकर भी नहीं रहना चाहता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. या‍मिनी मोहनसेन और भगवानदास बाबा जी महाशय ने वृंदावन से सत्रहों शतक बंगला भाषांतर सहित सं. 1990-1993 में प्रकाशित किये थे।
  2. दूरे चंतन्‍य चरणा: कलिराविरभून्‍महान्। कृष्‍णा प्रेम कथं प्राप्‍यों विना वृंदावन रतिम् ।।(4-29 और 4-100)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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