श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
दीपक सौं लगि दीपक होई, एकै धर्म न संसै कोई । प्रबोधानंद जी ने रसिक अनन्य धर्म की परिपाटी ग्रहण करके नित्य विहार रस का वर्णन किया और रसिक-जनों के हृदयों का सिंचन किया। उन्होंने अनेक ‘कुञ्ज-रहस्य ग्रंथों’ की रचना की और वृंदावन-निष्ठा को सुदृढ़ बनाया। रसिक अनन्य धर्म परिपाटी, जानि गही हित जी की घाटी |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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