श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
ब्रजभाषा-गद्य
4.अठारहवीं शती के पूर्वार्ध की एक अन्य गद्य रचना ‘हित चतुरासी’ की गोस्वामी रसिक लाल जो कृत टीका है। यह गोस्वामी जी श्रीदामोदर चन्द्र जी के पोत्र थे। इन्होंने सं. 1734 में यह टीका पूर्ण की है। इसकी भाषा ‘हस्तामलक’ से मिलती-जुलती है। 5.अनन्य अली जी के ‘स्वप्न विलास’ का उल्लेख पीछे किया जा चुका है। यह अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध की रचना हैं। इसमें 15 प्रसंग है। प्रथम तीन प्रसंगों में अनन्य अली जी ने अपने संबंध में कुछ बातें लिखी हैं। तीसरे प्रसंग से उनके द्वारा देखे गये भजन-संबंधी स्वप्नों का वर्णन आरंभ हो जाता है। अनन्य अली जी का गद्य भी उनके पद्य की भाँति सीधा-साधा हैं। यहाँ एक छोटा सा स्वप्न दिया जाता है। ‘इक दिन मोकौं जुर आयौ। तातैं मेरी शरीर बहुत काहिल भयौ। कछु सुधि रही नहीं। तब हौं मानसी में लड़ैती कों ब्यारू करावनौ भूलिगयौ। तब मौकौं रात्रि आधी गयें पाछे नींद आई। तब मोकौं सपने में कोऊ कुटी में, तैं पुकारत हैं, ‘अनन्य अली तूं उठि हमकों ब्यारू कराव’ हम चड़ी बेरि के बैठि रहे हैं, बड़ी अबार भई है’। मैं सपने में सुनि के जागि उठ्यौं, चौकिं परयौ। सावधान भयौ तब मोकौं सुधि आई। तब मैं सुमिरन करि मन लगाइ ब्यारू कराई।’
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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