हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 403

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी

रास के पदों में श्यामा-श्याम के ‘होड़-होड़ी’ नृत्य करने का उल्लेख अनेक महात्माओं ने किया है। सूरदास जी के एक पद में भी यह मिलता है,

होड़-होड़ी नृत्य करै रीझि-रीझि अंक भरै,
तत्त थेई-थेई-थेई उघटत हैं हरखि मन।[1]

होड़ लगाकर नृत्य करने पर श्यामा-श्याम, स्वभावत:, अपनी श्रेष्ठतम कला का प्रदर्शन करते हैं। इसी बात को व्यंजित करने के लिये सूरदास जी ने अपने पद में ‘होड़-होड़ी नृत्य’ का उल्लेख किया है। चाचा जी ने अपने पद में इस होड़ का नाटकीय शैली में वर्णन करके एक स्वतंत्र और आकर्षक लीला खड़ी कर दी है। इस ढंग के वर्णनों में लीला के प्रत्यक्षीकरण में भी बहुत सहायता मिलती है और यह तो स्पष्ट है कि लीला जितने अंशों में प्रत्यक्ष बनती है उतने ही अंशों में वह आस्वादित होती है।

चाचा जी की छद्म-लीलाओं में, जिनका उल्लेख हम पीछे कर चुके हैं, लीला वर्णन की यह कला बहुत विशद रूप में प्रगट हुई है। प्रत्येक छद्म लीला में एक नाटकीय प्रबंध चलता है जिसमें श्यामा-श्यामा की अत्यंत गंभीर प्रीति आकर्षक और सहज गम्य रूपों में प्रकाशित हो जाती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (सूरदास)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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