हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 401

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी

जलद घुरवा उठयौ नवल प्रेरयौ पवन,
दृगनि कौ लाभ आवनि महा छविभरी।
किधौ सिंगार तरु रूप के बाग में,
लसत कमनी बार कनक बेलिनु करी।।
वदन की हँसनि में रदन तै दुति कढ़ी,
तत्त थेई थेई मोहन जु धुनि उच्चरी।

नृत्य समाप्त होने पर सखीजन प्रेमोल्लास में भरकर उनके ऊपर पुष्पांजलि वारती हैं और श्री राधा ‘भलै जू भलै’ कहकर अपने प्रियतम को आदर देती है। ‘सखी पहुपांजुलि वारिं चटके’ करनि ‘भलै जू भलै’ कहि प्रिया अति आदरी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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