हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 390

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी

'विमुख उद्धारन बेली’ तो पूरी की पूरी विनोदमय है। इसमें एक विरक्त साधु और एक वृद्धा का संवाद है। साधु कहता है-

तेरी आई पिछली बिरियां डुकरी राधा कृष्णा कहनौ।
गृह धंधे सब जनम गँबायो अब कर माला गहनौ।।
लख चौरासी भ्रमि-भ्रमि पाई उत्तम मानुष देही।
अब सुचेत ह्वै परम प्रीति सौं मुख हरिनाम न लेही।।

इतना सुनते ही ‘डोकरी’ चिढ़ जाती है और अपनी भगवद् विमुखता की पुष्टि उन स्त्री सुलभ वहमों के कथन द्वारा करती है जो स्वाभाविकतया हास्यास्पद हैं। वह साधु को डांटते हुए कहती है,

कहा वकत हौ सब जानत हौं अनबोलल्यौई रहनौ।
मुनि वैरगिया तु अति ठगिया मोहि न भजन सौं लहनौ।।
एकबार गर कंठी बांधी सासु ली देखि भारी।
इक दिन माथे तिलक देखि कै पति मोहि कीन्ही न्यारी।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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