श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्री हित रूपलाल काल (सं. 1775-1875 तक)
श्री हित रूपलाल-काल के कुछ नवीन रूप विधानों को निकुंज-लीला के अन्तर्गत तो नहीं कहा जा सकता किन्तु वे सब एकान्त भाव से हिताचार्य द्वारा बताये हुये उपरोक्त प्रयोजन की सिद्धि में नियुक्त हैं और उन सबका लक्ष्य श्रीराधा के चरणों में रति उत्पन्न करना है। ‘व्रज’ और ‘निकुंज’ की लीलाओं में श्रीराधा-कृष्ण सामान्य होते हुये भी परस्पर बहुत भिन्नता है। व्रज लीलाओं में राधाकृष्ण का पूरा परिवार, नंद, यशोदा, वृषभानु, कीर्ति, गोधन, गोपी, ग्वाल आदि सब लीला में सहायक बनते हैं, निकुंज लीलाओं में केवल राधाकृष्ण और सखीगण लीला का निर्माण करते हैं। व्रज की लीलाओं का क्षेत्र बड़ा है और उसमें वृन्दावन, गोकुल, गोवर्धन, नंदगाँव, बरसाना आदि व्रज के अनेक स्थान आ जाते हैं, निकुंज-लीला केवल वृन्दावन से संबन्धित है। व्रज लीलाओं में श्रीकृष्ण की प्रधानता है, निकुंज की लीलाओं में श्री राधा की। इसके अतिरिक्त, जैसा हम पीछे देख चुके हैं, दोनों लीलाओं में प्रेम का स्वरूप भी भिन्न है। श्रीहित रूपलाल काल के अन्यतम वाणीकार चाचा हित वृन्दावन दास ने कुछ ऐसी लीलायें लिखी हैं जिन में राधा कृष्ण का पूरा परिवार सम्मिलित है और जो नंदगाम, बरसाना, गोवर्धन आदि से सम्बन्धित हैं। इन लीलाओं के लिखने में उनका उद्देश्य निकुंज-लीलाओं को भाँति व्रज लीलाओं में भी श्रीराधा का प्राधान्य स्थापित करना है। उनका विश्वास है कि व्रजभूमि और वृन्दावन की संपूर्ण रमणीयता श्री राधा के कारण ही है और उन्होंने अपने झूला के एक पद में श्री राधा से यही बात कही भी है- ‘व्रज भूमि अरु कानन रमानौं होत है तेरौ कियौ।’
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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