हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 37

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त-प्रमाण-ग्रन्थ


श्री हित हरिवंश की रचनाओं के साथ इस सम्‍प्रदाय का अन्‍य प्रमाण-ग्रन्‍थ श्रीमद्भगवत माना जाता है। सेवक जी ने श्रीमद्भागवत को प्रथम प्रमाण ग्रन्‍थ एवं श्री हरिवंश को वाणी को अन्तिम प्रमाण माना है।

शुक मुख वचन जु श्रवन सुनावहु।
तब श्री हरिवंश सुनाम कहावहु।।[1]

श्रीमद्भागवत का प्रामाण्‍य सामान्‍य भक्ति-सिद्धान्‍त के लिये एवं श्री हरिवंश की वाणी का प्रामाण्य उसकी विशिष्‍ट रस-रीति के लिये स्‍वीकार किया गया है।

जिस प्रकार श्रीमद्भागवत को निगम कल्‍पतरु का फल माना जाता है- ‘निगम कल्‍पतरोर्गलित फल’, उसी प्रकार श्रीहित हरिवंश की वाणी को निगमों का सार सिद्धान्‍त माना गया है- ‘निगम सार सिद्धान्‍त संत विश्राम मधुरवर’। सेवक जी ने बतलाया है कि ‘पृथ्‍वी को म्‍लेच्‍छों के भार से पीड़ित एवं संसार को श्रुति-पथ विमुख देख कर श्रीहित हरिवंश ने वेदों की सार-विधि का उद्धार किया।'

धर्म रहित जानी सब दुनी-म्‍लेच्‍छनि भार दुखित मेदिनी।
                                            धनी और दूजौ नहीं।।
करी कृपा मन कियौ विचार-श्रुति पथ विमुख दुखित संसार।
                                               सार वेद विधि उद्धरी।।[2]

इस प्रकार, वाणी के प्रामाण्‍य के स्‍वीकार में, वेदों के प्रामाण्‍य को स्‍वीकार किया गया है। वेद परम-तत्‍व को ‘रस’ कह कर विरत हो जाता है। ‘वाणी’ उस रस को रसिकों के आस्‍वाद के लिये प्रत्‍यक्ष करती है। वेद में जिस तथ्‍य का संकेत मात्र है, वही ‘वाणी’ में पल्‍लवित और पुष्पित हुआ है। ‘वाणी’ वेद के अनुकूल है, अनुरूप नहीं और इसीलिये ‘वाणी’ में प्रत्‍यक्ष किये गये रस-स्‍वरूप के लिये ‘वाणी’ ही अन्तिम प्रमाण मानी जाती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. से. वा. 3-4
  2. से. वा. 1-5

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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