हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 367

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री कृष्णदास जी भावुक

निरखि सखि सनमुख मृदु मुसकात ।
मानहुँ रूप अनूप सरोवर अमल कमल विकसात ।।
विथकित नैननि पलकैं अलकै अलि चलि अंत न जात ।
कृष्णदास हित छवि की मधुरतिु नव भायन सरसात ।।

हम कह चुके हैं कि श्री ध्रुवदास-काल राधावल्लभीय साहित्य का अत्यन्त समृद्ध काल है। हम ऊपर जिन वाणीकारों का संक्षिप्त परिचय दे चुके हैं, उनके अतिरिक्त बीसियों रसिक महानुभावों की संपूर्ण रचनायें या फुटकर पद प्राप्त हैं। उन में से कुछ वाणी रचयिताओं के नाम नीचे दिये जाते हैं ।श्री सदानन्द गोस्वामी, श्री दामोदरचन्द्र गोस्वामी, श्रीकमल नयन गोस्वामी, श्री सुखलाल गोस्वामी, श्री गुलाब लाल गोस्वामी, श्री रसिकलाल गोस्वामी, श्री जोरीलाल गोस्वामी, श्री व्रजलाल गोस्वामी, श्री गोविन्दलाल गोस्वामी, श्री हरिलाल गोस्वामी, श्री सेवा सखी, श्री चन्द्र सखी, श्री अतिवल्लभ जी, श्री मोहन मत्त जी,[1] श्री परमानन्ददास, श्री मुकुन्दलाल गोस्वामी, श्री कुंजलाल गोस्वामी इत्यादि ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह श्री रासदास गोस्वामी के शिष्य थे ओर अठारहवीं शती के पूवर्धि में विद्यमान थे। यह पंजाबी थे और इन्होंने पंजाबी मिश्रित हिन्दी में वाणी रचना की है। इनकी माझे प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी रचनाओं में दृढ़ निष्ठा जनित अक्खड़पन भरा हुआ है। दो माझें नीचे दी जाती हैं।

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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