हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 364

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री अनन्य अलि जी

चरित्र:- इन्होंने अपने बारे में कुछ बातें अपने ‘स्वप्न विलास’ में लिखी हैं। इनका जन्म एक राधावल्लभीय कुटुम्ब में हुआ था और इनके बड़े भाई भी उच्चकोटि के रसिक भक्त और संप्रदाय के मर्मज्ञ थे। इनका पूर्व नाम भगवान दास था और पाठ वर्ष की अवस्था में ही यह इस संप्रदाय में दीक्षित हो गय थे। अल्पवय में ही अनन्य अलि जी को भगवत प्रेम की चटपटी लग गई थी और बीस वर्ष की आयु के बाद यह अपने गुरु श्री गोविन्द लाल जी के साथ, सं. 1751 में, वृन्दावन चले गये। इनका शेष जीवन वृन्दावन वन में ही बीता।

अनन्य अलि जी की लगभग 76 रचनाएँ प्राप्त है। इनको नई-नई लीलाओं का स्फुरण होता रहता था और उनकी का वर्णन यह सीधी सादी भाषा में कर देते थे। विहार वर्णन के अतिरिक्त इन्होंने वृन्दावन महिमा, गुरु महिमा, नाम प्रताप, सखी स्वरूप आदि पर स्वतंत्र रचनायें की हैं। इनके कुछ छंद नीचे दिये जाते हैं ।

पावस की रितु आई, श्याम घटा सरसाई,
मंद-मंद मुसिकाई दोऊ सरसात री ।
चपला हू चमकात, गरजात लरजात,
पिय हिय लपटात अति हरखात री ।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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