श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्री अनन्य अलि जी
चरित्र:- इन्होंने अपने बारे में कुछ बातें अपने ‘स्वप्न विलास’ में लिखी हैं। इनका जन्म एक राधावल्लभीय कुटुम्ब में हुआ था और इनके बड़े भाई भी उच्चकोटि के रसिक भक्त और संप्रदाय के मर्मज्ञ थे। इनका पूर्व नाम भगवान दास था और पाठ वर्ष की अवस्था में ही यह इस संप्रदाय में दीक्षित हो गय थे। अल्पवय में ही अनन्य अलि जी को भगवत प्रेम की चटपटी लग गई थी और बीस वर्ष की आयु के बाद यह अपने गुरु श्री गोविन्द लाल जी के साथ, सं. 1751 में, वृन्दावन चले गये। इनका शेष जीवन वृन्दावन वन में ही बीता। अनन्य अलि जी की लगभग 76 रचनाएँ प्राप्त है। इनको नई-नई लीलाओं का स्फुरण होता रहता था और उनकी का वर्णन यह सीधी सादी भाषा में कर देते थे। विहार वर्णन के अतिरिक्त इन्होंने वृन्दावन महिमा, गुरु महिमा, नाम प्रताप, सखी स्वरूप आदि पर स्वतंत्र रचनायें की हैं। इनके कुछ छंद नीचे दिये जाते हैं । पावस की रितु आई, श्याम घटा सरसाई,
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज