श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
हित अनूप जी
चरित्र :- इनका जन्म अठारहवीं शती के आरंभ में बदायूँ जिले के सहसबान नामक स्थान में हुआ था। यह सुकवि थे और किशोरावस्था में ही सकुटुम्ब वृन्दावन जाकर बस गये थे। इनका एक ही अपूर्ण ग्रन्थ ‘माधुर्य विलास’ लेखक ने देखा है। हित अनूप जी इस ग्रन्थ का पूवर्धि ही बना पाये थे कि उनका देहान्त हो गया। इनके मित्र वंशीधर जी ने इस ग्रन्थ का उत्तरार्ध चरकर उसको सं. 1774 में पूर्ण बनाया। हित अनूप जी गो. कमल नयन जी के शिष्य थे। संप्रदाय के साहित्य में ‘माधुर्य विलास’ (पूवर्धि) एक अनूठी रचना है। इसमें कुल मिलाकर 291 दोहा-चौपाई हैं। इसमें हित अनूप जी ने भगवान के माधुर्य विलास का विवेचन नये प्रकार से किया है। माधुर्य का अर्थ है। ईश्वरता ब्रह्मत्व कौ जहाँ न कोऊ भास । माधुर्य-विलास के चार भेद बतलाये हैं, वपु, सौंदर्य, सजाति और मैन सम्बन्ध। वपु (शरीर सम्बन्ध) के आधार पर ‘आतमता रस’ निष्पन्न होता है, सौन्दर्य के आधार पर ‘रूप रस’ सजातीयता के आधार पर ‘सख्य रस’ और मैन सम्बन्ध के आधार पर श्रृंगार रस निष्पन्न होता है। श्रृंगार रस के वर्णन में स्वकीया और परकीया नायिकाओं के विविध भेदों का वर्णन किया गया है। इसके बाद व्रज वृन्दावन का बड़ा रोचक वर्णन है। अन्त में रसिक उपासकों की तीन अवस्थाओं आदि मध्य और प्रगल्भ का मनोवैज्ञानिक परिचय दिया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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