श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्री कल्याण पुजारी जी
रसिकदास जी की वाणी में शब्दों का तोड़-मरोड़ बहुत काफी है और अप्रयुक्तत्त्व दोषी भी जहाँ-तहाँ दिखलाई देता है। अनुप्रास मिलाने के लिये भी शब्दों को बहुत विरूप बनाया गया है। रचना अधिक होने के कारण, फिर भी, अच्छे छंद काफी संख्या में मिल जाते हैं। इनकी कुछ चुनी हुईं रचनायें नीचे दी जाती हैं। जीवन जोरी भाँवती जीजै नैननि जोइ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (अभिलाष लता)
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