हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 359

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री कल्याण पुजारी जी

रसिकदास जी की वाणी में शब्दों का तोड़-मरोड़ बहुत काफी है और अप्रयुक्तत्त्व दोषी भी जहाँ-तहाँ दिखलाई देता है। अनुप्रास मिलाने के लिये भी शब्दों को बहुत विरूप बनाया गया है। रचना अधिक होने के कारण, फिर भी, अच्छे छंद काफी संख्या में मिल जाते हैं। इनकी कुछ चुनी हुईं रचनायें नीचे दी जाती हैं।

जीवन जोरी भाँवती जीजै नैननि जोइ ।
अद्भुत सील सुभाव गुन बरनि सकै नहिं कोइ ।।
बरन सकैं नहिं कोइ सकल रस सुख के सागर ।
गौर श्याम अभिराम रसिक नव नागरि नागर ।।
कुंज केलि सुख दानि परस्पर आनंद विलसैं ।
उठत मनोरथ भाइ दाइ दै अङ्गनि परसै ।।
प्रेम-सवादी रसिक वर बन विहरत हैं सोइ ।
जीवन जोरी भाँवती जीजै नैननि जाइ ।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (अभिलाष लता)

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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