हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 327

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री ध्रुवदास काल

चढ़िकै मैन तुरंग पै चलिबौ पावक माहिं ।
प्रेम पंथ एसौ कठिन सब कोउ निबहत नाहिं ।।[1]

और कौ प्रवेश कहाँ मनहू न भेदी जहाँ,
एसी प्रेम छटा ताहि काहि लै प्रमानिये ।
हितध्रुव जोई कछु कहिवौ है एसी भाँति,
जैसे आली पाहन सौं मानिक लै भानिये ।।[2]

ध्रुवदास जी की बायालीस लीलायें और 103 पद मिलते हैं। इन में ‘वैदक ज्ञान लीला’ ‘मन शिक्षा लीला’ ‘सिद्धान्त विचार लीला’ ‘भक्त नामावली लीला’ आदि भी हैं, जिनमें खींचतान कर भी ‘लीला’ शब्द की संगति नहीं बैठती। कतिपय लीलाओं में रचना-काल दिया हुआ है। रसानंद लीला सं. 1650 मं रची गई है, प्रेमावली लीला सं. 1671 में, सभा मंडल लीला सं. 1681 में और रहस्य मंजरी लीला सं. 1698 में।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (प्रीति चौबनी)
  2. (श्रृंगार शत)

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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