हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 309

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री ध्रुवदास काल

कोमल वाणी सबकौं भावै, अक्षर पढ़त अर्थ दरसावै ।
दिस-दिस घर-घर प्रगटी बानी, रसिकनि अपनी निधि करि जानी ।।
चारि दिसानि समुद्र प्रजंत, बानी पढ़ै सुनैं सब संत ।
बानी सुनि-सुनि भये उपासक, कर्म ज्ञान तजि भये बन बासिक ।।
गुरु गुरुकुल सब भये प्रसन्न प्रतीति रीति लखि कहैं धनि धन्य ।

‘श्रीराधावल्लभ लाल जब बन विहार के लिये पधारते थे, तब ध्रुवदास जी की कुटी पर ठहरते थे और वहाँ भोग, आरती और भेंट ग्रहण करके मंदिर में वापिस आते थे।’

बानी हित ध्रुवदास की सुनि जोरी मुसिकाँति ।
भगवत् अद्भुत रीति कछु भाव-भावना पाँति।।[1]

ध्रुवदास जी ने प्रेम-वर्णन की एक नई विधा को जन्म दिया है। भगवत मुदित जी ने इस नवीन विधा को ‘अद्भुत रीति’ कहा है। प्रेम मनुष्य के मन की वह वृत्ति है जो तर्क को स्वीकार नहीं करती। अत: प्रेम का दर्शन तर्क पर आश्रित न होकर, स्वभावत:, मनोविज्ञान पर आधारित है। हितप्रभु ने प्रेम के मनोविज्ञान के ऊपर ही अपने प्रेम-दर्शन और उपासना को खड़ा किया है। इसके लिये उनको प्रेम वर्णन की प्रचलित रीति में आवश्यक परिवर्तन करने पड़े हैं किन्तु उनकी शैली की बाह्य रेखायें लगभग वैसी ही है जैसी परम्परागत शैली की। इसीलिये स्वयं हिताचार्य की वाणी से उनके अनन्य साधारण प्रेम-दर्शन को समझना कठिन हो जाता है। ध्रुवदास जी ने प्राप्त परिपाटी का सर्वथा परित्याग करके प्रेम का वर्णन उसके सहज मनोवैज्ञानिक आधार पर किया है। उनके लिये श्रीराधा कृष्ण प्रेम और रूप की उज्ज्वलतम मूर्तियाँ हैं तथा प्रेम और रूप प्रेम की दो अभिव्यक्तियाँ हैं जो एक दूसरे में ओत-प्रोत होते हुए भी स्वतंत्र है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री भगवत् मुदित जी कृत चरित्र का संक्षिप्त रूपान्तर

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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