श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्री ध्रुवदास काल
कोमल वाणी सबकौं भावै, अक्षर पढ़त अर्थ दरसावै । ‘श्रीराधावल्लभ लाल जब बन विहार के लिये पधारते थे, तब ध्रुवदास जी की कुटी पर ठहरते थे और वहाँ भोग, आरती और भेंट ग्रहण करके मंदिर में वापिस आते थे।’ बानी हित ध्रुवदास की सुनि जोरी मुसिकाँति । ध्रुवदास जी ने प्रेम-वर्णन की एक नई विधा को जन्म दिया है। भगवत मुदित जी ने इस नवीन विधा को ‘अद्भुत रीति’ कहा है। प्रेम मनुष्य के मन की वह वृत्ति है जो तर्क को स्वीकार नहीं करती। अत: प्रेम का दर्शन तर्क पर आश्रित न होकर, स्वभावत:, मनोविज्ञान पर आधारित है। हितप्रभु ने प्रेम के मनोविज्ञान के ऊपर ही अपने प्रेम-दर्शन और उपासना को खड़ा किया है। इसके लिये उनको प्रेम वर्णन की प्रचलित रीति में आवश्यक परिवर्तन करने पड़े हैं किन्तु उनकी शैली की बाह्य रेखायें लगभग वैसी ही है जैसी परम्परागत शैली की। इसीलिये स्वयं हिताचार्य की वाणी से उनके अनन्य साधारण प्रेम-दर्शन को समझना कठिन हो जाता है। ध्रुवदास जी ने प्राप्त परिपाटी का सर्वथा परित्याग करके प्रेम का वर्णन उसके सहज मनोवैज्ञानिक आधार पर किया है। उनके लिये श्रीराधा कृष्ण प्रेम और रूप की उज्ज्वलतम मूर्तियाँ हैं तथा प्रेम और रूप प्रेम की दो अभिव्यक्तियाँ हैं जो एक दूसरे में ओत-प्रोत होते हुए भी स्वतंत्र है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री भगवत् मुदित जी कृत चरित्र का संक्षिप्त रूपान्तर
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