श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
स्वामी चतुर्भुजदास जी
रसिक अनन्य माल में दिये हुए स्वामी जी के चरित्र से अनुमान होता है कि वे सत्रहवीं शती के द्वितीय दशक में राधा वल्लभीय संप्रदाय में दीक्षित हुए होंगे। उनके धर्म विचार यश में रचना काल सं. 1686 दिया हुआ है। इससे स्वामी जी का दीर्घजीवी होना सिद्ध होता है। नाभा जी की भक्तमाल में स्वामी जी के सम्बन्ध में निम्न लिखित छप्पय मिलता है। गायौ भक्ति प्रताप सबहि दासत्त्व दृढ़ायौ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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