साहित्य
लालस्वामी जी
उक्त गोस्वामी जी श्री हिताचार्य के नाती थे और विक्रम सं. 1666 में उनकी गद्दी पर विराजमान हुए थे। अत: लाल स्वामी जी का रचना काल सं.1630 से सं.1675 तक मानना चाहिये। इनकी वाणी के कुछ छंद देखिये,
मंडल रास विलास महा रस मंडिल श्री वृषभानु दुलारी।
पंडित कोक संगीत भरीं गुन कोटिन राजत गोप कुमारी।।
प्रीतम के भुज दंड में शोभित संगम अंग अनंगनि वारी।
तान तरंगनि रंग बढ़यौ ऐसे राधिका वल्लभ की वलिहारी।।
केलि के मंदिर सेज सरोजनि लाड़िली लाल दियें गरवाहीं।
देखनि मध्य निमेष महा दुख लोचन लोल तृषा न सिराहीं।।
साँवल उज्जवल केलि कलारस माधुरीसार सुधा बरसाहीं।
गाइन चारत मल्ल पछारत कुंज के आंगन आवत नाहीं।।
नंद कुमार की लीला अपार औतार अनेक गनै नहिं जाहीं।
नित्य विहार विलास अभंग अनंग त्रिषा न बुझाहीं।।
लाड़िली लाल महा प्रभुता बिलसै सरसे अति ही मन महीं।
पुंज भरे सुख सेज सरोजनि कुंज के आंगन आवत नाहीं।।
प्रेम परावधि राधिका जू अभिअन्तर भाव अखंड रहाहीं।
बिखरयौ मन मोहन लपट कौ बियुरी लट संपुट पंगु कराहीं।।
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