हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 295

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
लालस्‍वामी जी


उक्‍त गोस्‍वामी जी श्री हिताचार्य के नाती थे और विक्रम सं. 1666 में उनकी गद्दी पर विराजमान हुए थे। अत: लाल स्‍वामी जी का रचना काल सं.1630 से सं.1675 तक मानना चाहिये। इनकी वाणी के कुछ छंद देखिये,

मंडल रास विलास महा रस मंडिल श्री वृषभानु दुलारी।
पंडित कोक संगीत भरीं गुन कोटिन राजत गोप कुमारी।।
प्रीतम के भुज दंड में शोभित संगम अंग अनंगनि वारी।
तान तरंगनि रंग बढ़यौ ऐसे राधिका वल्‍लभ की वलिहारी।।
केलि के मंदिर सेज सरोजनि लाड़िली लाल दियें गरवाहीं।
देखनि मध्‍य निमेष महा दुख लोचन लोल तृषा न सिराहीं।।
साँवल उज्‍जवल केलि कलारस माधुरीसार सुधा बरसाहीं।
गाइन चारत मल्‍ल पछारत कुंज के आंगन आवत नाहीं।।
नंद कुमार की लीला अपार औतार अनेक गनै नहिं जाहीं।
नित्‍य विहार विलास अभंग अनंग त्रिषा न बुझाहीं।।
लाड़िली लाल महा प्रभुता बिलसै सरसे अति ही मन महीं।
पुंज भरे सुख सेज सरोजनि कुंज के आंगन आवत नाहीं।।
प्रेम परावधि राधिका जू अभिअन्‍तर भाव अखंड रहाहीं।
बिखरयौ मन मोहन लपट कौ बियुरी लट संपुट पंगु कराहीं।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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