विषै-वासना जारि कै झारि उड़ावै खेह।
मारग रसिक नरेश के तब ढंग लागै देह।।
तन-मन साधे ही फिरे झूठे लोभ न देइ।
हिये दृष्टि संग भजन के जहाँ-तहाँ सुख लेई।।
मारग रसिक नरेश के निपट विकट है चाल।
तन-मन कौंटि, सिराय गरि वृथा बजावत गाल।।
मूरति नैननि में रमी हिय मधि गुन रहे पूरि।
दसा न कोऊ समुझि है प्रेम पहुँचनौ दूरि।।
धरै हिये मधि डोलिहौं सबकौं माथौं नाइ।
जाचौं-राचौं कहुँ नहीं परिपूरन बल पाइ।।
दृष्टि भजन छाई फिरे नई-नई रुचि प्रान।
मुख गुन कहै लड़ावनौं उर में रूप सयान।।
प्रेम गहे मन नैन जे तिनकी चितवनि आन।
जाके हियरा हिलग हैं सोई जाने जान।।
प्रेम गहे मन नैन जे तिनकी चितवनि आन।
जाके हियरा हिलग हैं सोई जानैं जान।।
प्रेम हिलग की दीठि दृग लागि रहे जिहिं ठौर।
कछू कठिन सौ पैंच है वाके मन की दौर।।