हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 286

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
नागरीदास जी


विषै-वासना जारि कै झारि उड़ावै खेह।
मारग रसिक नरेश के तब ढंग लागै देह।।
तन-मन साधे ही फिरे झूठे लोभ न देइ।
हिये दृष्टि संग भजन के जहाँ-तहाँ सुख लेई।।
मारग रसिक नरेश के निपट विकट है चाल।
तन-मन कौंटि, सिराय गरि वृथा बजावत गाल।।
मूरति नैननि में रमी हिय मधि गुन रहे पूरि।
दसा न कोऊ समुझि है प्रेम पहुँचनौ दूरि।।
धरै हिये मधि डोलिहौं सबकौं माथौं नाइ।
जाचौं-राचौं कहुँ नहीं परिपूरन बल पाइ।।
दृष्टि भजन छाई फिरे नई-नई रुचि प्रान।
मुख गुन कहै लड़ावनौं उर में रूप सयान।।
प्रेम गहे मन नैन जे तिनकी चित‍वनि आन।
जाके हियरा हिलग हैं सोई जाने जान।।
प्रेम गहे मन नैन जे तिनकी चितवनि आन।
जाके हियरा हिलग हैं सोई जानैं जान।।
प्रेम हिलग की दीठि दृग लागि रहे जिहिं ठौर।
कछू कठिन सौ पैंच है वाके मन की दौर।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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