हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 165

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
सिद्धान्त
उपासना-मार्ग


श्री हरिवंश प्रसिद्ध धर्म समुझे न अलप तप।
समुझौ श्री हरिवंश कृपा सेवहु धर्मिनु जप।।
धर्मी बिनु नहि धर्म नाहि बिनु धर्म जुधर्मी।
श्री हरिवंश प्रताप मरम जानहिं जे मरमी।।
हरिवंश नाम धर्मी जु रति तिन शरण्य संतत रहै।
सेवक निसिदिन धर्मिनु मिलै श्री हरिवंश सुजस कहै।।[1]

धर्मी की उपासना का विधान करके सेवक जी ने संप्रदाय की उपासना-पद्धति को सखियों के केन्द्रीय भाव के बिलकुल अनुकूल बना दिया है। हम ऊपर कह चुके हैं कि सखियाँ श्याम-श्यामा की उपासना प्रेम-धर्म के सबसे बड़े धर्मी के रूप में करती हैं। वे भी यहीं मानती हैं कि धर्म की स्थिति धर्मी के कारण है और धर्मीं की स्थिति धर्म के कारण है।

केवल श्रीहरिवंश-धर्म के धर्मियों के संग का यह विधान विभिन्न साधन-मार्गों के, एक दूसरे से भिन्न, मौलिक तत्त्वों पर दृष्टि रखकर किया गया है। श्री ध्रुवदास ने कहा है ‘भगवान को विभिन्न भावों से भजने वाले अनेक भक्त संसार में विद्यमान हैं और उनके अनेक भेद हैं। अपनी उपासना को ध्यान में रखे बिना जो उपासक हर प्रकार के भक्तों का संग करते हैं, उनको परिणाम में अत्यंत खेद प्राप्त होता है। सर्वत्र एक-सा भाव रखना ज्ञान-मार्ग के साधकों की रीति है; प्रेम-भजन करने वाले को तो विवेक पूर्वक खूब सोच समझ कर अपने भाव के अनुकूल उपासना करने वालों के साथ प्रीति करनी चाहिये।’

भक्त आहिं बहु भाँति के तिनमें बहुतक भेद।
बिनु विवेक मिलिबौ तहाँ मन पायै अति खेद।।
सबठां मिलियौ एक सौ ज्ञानी की यह रीति।
भजनी सोई विवेक सौ करै समुझि कै प्रीति।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. से. वा. 13-11

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः