श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
उपासना-मार्ग
श्री हरिवंश प्रसिद्ध धर्म समुझे न अलप तप। धर्मी की उपासना का विधान करके सेवक जी ने संप्रदाय की उपासना-पद्धति को सखियों के केन्द्रीय भाव के बिलकुल अनुकूल बना दिया है। हम ऊपर कह चुके हैं कि सखियाँ श्याम-श्यामा की उपासना प्रेम-धर्म के सबसे बड़े धर्मी के रूप में करती हैं। वे भी यहीं मानती हैं कि धर्म की स्थिति धर्मी के कारण है और धर्मीं की स्थिति धर्म के कारण है। केवल श्रीहरिवंश-धर्म के धर्मियों के संग का यह विधान विभिन्न साधन-मार्गों के, एक दूसरे से भिन्न, मौलिक तत्त्वों पर दृष्टि रखकर किया गया है। श्री ध्रुवदास ने कहा है ‘भगवान को विभिन्न भावों से भजने वाले अनेक भक्त संसार में विद्यमान हैं और उनके अनेक भेद हैं। अपनी उपासना को ध्यान में रखे बिना जो उपासक हर प्रकार के भक्तों का संग करते हैं, उनको परिणाम में अत्यंत खेद प्राप्त होता है। सर्वत्र एक-सा भाव रखना ज्ञान-मार्ग के साधकों की रीति है; प्रेम-भजन करने वाले को तो विवेक पूर्वक खूब सोच समझ कर अपने भाव के अनुकूल उपासना करने वालों के साथ प्रीति करनी चाहिये।’ भक्त आहिं बहु भाँति के तिनमें बहुतक भेद। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ से. वा. 13-11
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