श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
सहचरी
लिये दिये मन रहै सहेली दंपति मिले खिलौना। युगल के साथ सखियों का मित्र भाव तो प्रसिद्ध ही है। इनका अनुराग संभ्रम शून्य है। यह अपनी स्वामिनी से सहज भाव से कह सकती हैं ‘हे भामिनी, तू गर्व से मत्त होकर गुम–सुम रहती है, अपनी बात मुझसे क्यों नहीं कहती? हे राधिका प्यारी, मैं कहते-कहते थक गई, तू मुझसे रात्रि का विलास कहने में क्यों लज्जित होती है?’ अपनी बात मोसौं कहि री भामिनी, जिस समय श्रीराधा मानिंनी होती है, सखियाँ ही सहानुभूति पूर्ण एवं विदग्ध वचनों से उनका मान-मोचन करती हैं। श्यामसुन्दर के रूप-सौन्दर्य एवं उनकी अनन्य प्रीति के मार्मिक वर्णन से आरंभ करके वे शरद की सुन्दर रात्रि के पल-पल घटने का सूचन करती है। अन्त में, अत्यन्त अपनपे के साथ निवेदन करती हैं, ‘हे सखी, मैं अब अपनी ओर से एक बात कहती हूँ, उसे तुम्हें मान लेना चाहिये। हे सुमुखि, तुम अकारण ही यह घन विरह दुख सहन कर रही हो’। सखी की सौहार्द से भरी हुई अन्तिम बात प्रिया के चित्त पर असर कर जाती है और वे प्रसन्नतापूर्वक अपने प्रियतम से मिलकर सुख-सिन्धु में निमग्न हो जाती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज