हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 147

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
सहचरी

लिये दिये मन रहै सहेली दंपति मिले खिलौना।
कानन छवि-सर क्रीडत साँवल-गौर हंस मनौ छौना।।
नित-नित नये-नये अस कौतुक भये-न हैं पुनि हौंना।
वृन्‍दावन हित रूप अमी नैननि की ओक अचौंना।।[1]

युगल के साथ सखियों का मित्र भाव तो प्रसिद्ध ही है। इनका अनुराग संभ्रम शून्‍य है। यह अपनी स्‍वामिनी से सहज भाव से कह सकती हैं ‘हे भामिनी, तू गर्व से मत्त होकर गुम–सुम रहती है, अपनी बात मुझसे क्‍यों नहीं कहती? हे राधिका प्‍यारी, मैं कहते-कहते थक गई, तू मुझसे रात्रि का विलास कहने में क्‍यों लज्जित होती है?’

अपनी बात मोसौं कहि री भामिनी,
औंगी-मौंगी रहत गरब की माती।
हौं तोसौं कहत हारी, सुनि री राधिका प्‍यारी,
निशि कौ रंग क्‍यों न कहत लजाती।।[2]

जिस समय श्रीराधा मानि‍ंनी होती है, सखियाँ ही सहानुभूति पूर्ण एवं विदग्‍ध वचनों से उनका मान-मोचन करती हैं। श्‍यामसुन्‍दर के रूप-सौन्‍दर्य एवं उनकी अनन्‍य प्रीति के मार्मिक वर्णन से आरंभ करके वे शरद की सुन्‍दर रात्रि के पल-पल घटने का सूचन करती है। अन्‍त में, अत्‍यन्‍त अपनपे के साथ निवेदन करती हैं, ‘हे सखी, मैं अब अपनी ओर से एक बात कहती हूँ, उसे तुम्‍हें मान लेना चाहिये। हे सुमुखि, तुम अकारण ही यह घन विरह दुख सहन कर रही हो’। सखी की सौहार्द से भरी हुई अन्तिम बात प्रिया के चित्त पर असर कर जाती है और वे प्रसन्नतापूर्वक अपने प्रियतम से मिलकर सुख-सिन्‍धु में निमग्‍न हो जाती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. युगल सनेह पत्रिका
  2. हि० च० 15

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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