सहज गीता -रामसुखदास पृ. 90

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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सत्रहवाँ अध्याय

(श्रद्धात्रय विभाग योग)

(तीन प्रकार के भोजनकर्ता-) आयु, सत्त्वगुण, बल, नीरोगता, सुख और प्रसन्नता को बढ़ाने वाले, स्थिर रहने वाले, हृदय को शक्ति देने वाले, रसयुक्त तथा चिकने (घी, मक्खन, बादाम आदि)- ऐसे भोजन के पदार्थ ‘सात्त्विक’ मनुष्य को प्रिय होते हैं। अधिक कड़वे, खट्टे, नमकीन, गरम, तीखे, रूखे और दाहकारक भोजन के पदार्थ ‘राजस’ मनुष्य को प्रिय होते हैं, जो कि परिणाम में दुख, शोक और रोगों को उत्पन्न करते हैं। अधपके या सड़े हुए, रस रहित, शराब, प्याज, लहसुन आदि दुर्गन्धवाले, बासी, जूठे और महान् अपवित्र मांस-मछली अण्डे आदि भोजन के पदार्थ ‘तामस’ मनुष्य को प्रिय होते हैं।
(तीन प्रकार के यज्ञ-) यज्ञ करना हमारा कर्तव्य है- ऐसा मन में विचार करके और फल की इच्छा का त्याग करके शास्त्रविधि के अनुसार जो यज्ञ किया जाता है, वह ‘सात्त्विक’ होता है। हे भरत श्रेष्ठ अर्जुन! जो यज्ञ फल की इच्छा से किया जाता है अथवा लोगों को दिखाने के लिए किया जाता है, वह ‘राजस’ होता है। जो यज्ञ शास्त्रविधि के बिना, अन्न-दान से रहित, बिना मंत्रों के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किया जाता है, वह ‘तामस’ होता है।
(तीन प्रकार के तप-) देवता, ब्राह्मण, गुरुजन और तत्त्वज्ञ महापुरुष का यथायोग्य पूजन, सेवा, आज्ञापालन, आदर आदि करना; जल, मिट्टी आदि से शरीर को पवित्र रखना; सरलता अर्थात् ऐंठ-अकड़ न रखना; ब्रह्मचर्य का पालन करना और अहिंसा- यह शरीर का तप है। किसी में भी उद्वेग (हलचल) पैदा न करने वाले, सत्य, मीठे और हितकारक वचन बोलना, स्वाध्याय करना और अभ्यास (नामजप आदि) करना- यह वाणी का तप है। मन की प्रसन्नता, सौम्यभाव, मननशीलता, मन का वश में होना और भावों की शुद्धि- यह मन का तप है। यह तीनों प्रकार का (शारीरिक, वाचिक और मानसिक) तप आदि परम श्रद्धा के साथ और फल की इच्छा न रखकर निष्कामभाव से किया जाता है तो वह ‘सात्त्विक’ होता है। जो तप अपने सत्कार, मान और पूजा के लिए तथा लोगों को दिखाने के भाव से किया जाता है, वह ‘राजस’ होता है, जिसका फल नाशवान् और अनिश्चित होता है। जो तप मूढ़तापूर्वक हठ से अपने को पीड़ा देकर अथवा दूसरों को कष्ट देने के लिए किया जाता है, वह ‘तामस’ होता है।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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