सहज गीता -रामसुखदास पृ. 87

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

Prev.png

सोलहवाँ अध्याय

(दैवासुर सम्पद्विभाग योग)

आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य लोभ, क्रोध और अभिमान को लेकर मन-ही-मन सोचा करते हैं कि इतनी वस्तुएँ तो हमने अपनी चतुराई चालाकी से प्राप्त कर ली हैं, अब इतनी (दहेज आदि में) और प्राप्त कर लेंगे। इतना धन तो हमारे पास पहले से है ही, इतना धन और हो जाएगा। वह शत्रु तो हमारे द्वारा मारा गया है, दूसरे शत्रुओं को भी हम मार डालेंगे। हम सर्वसमर्थ हैं, हमारी बराबरी कोई नहीं कर सकता। हम भोग भोगने वाले हैं। हम सिद्ध हैं, इसलिए हम जो चाहें, वह कर सकते हैं। हम बड़े बलवान् और सुखी हैं। हमारे पास बहुत धन है। बहुत से मनुष्य हमारा साथ देने वाले हैं। हमारे समान दूसरा कौन हो सकता है? हम खूब यज्ञ करेंगे, दान देंगे और मौज करेंगे।
इस प्रकार आसुरी मनुष्य अज्ञान से मोहित होकर तरह-तरह के मनोरथ किया करते हैं। कामनाओं के कारण जिनका चित्त भटकता रहता है, जो मोहरूपी जाल में उलझे रहते हैं, और जो भोग तथा संग्रह में अत्यंत आसक्त रहते हैं, ऐसे आसुर मनुष्य मरने के बाद भयंकर, घोर यातना वाले नरकों में गिरते हैं।
आसुरी मनुष्य अपने-आपको बड़ा श्रेष्ठ समझते हैं कि हमारे समान कोई नहीं है; अतः हमारा आदर होना ही चाहिए। उनमें बहुत ज्यादा ऐंठ अकड़ रहती है। वे सदा धन और मान के नशे में चूर रहते हैं। वे यज्ञ, दान, तप आदि कोई शुभ कर्म भी करते हैं तो विधिपूर्वक नहीं करते, अपितु लोगों को दिखाने के लिए तथा अपनी प्रसिद्धि के लिए ही करते हैं। वे जो भी काम करते हैं, उसे अहंकार, हठ, घमण्ड, कामना और क्रोधपूर्वक ही करते हैं। ऐसे आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य अपने और दूसरों के शरीर में रहने वाले मुझ अन्तर्यामी के साथ वैर रखते हैं, और मेरे तथा दूसरों के गुणों में भी दोष देखते हैं। उन्हें संसार में कोई अच्छा आदमी दीखता ही नहीं! उन द्वेष करने वाले, क्रूर स्वभाव वाले और मनुष्यों में महान् नीच तथा अपवित्र मनुष्यों को मैं बार-बार कुत्ते, गधे, साँप, बिच्छू आदि आसुरी योनियों में गिराता हूँ, जिससे वे अपने पापों का फल भोगकर शुद्ध हो जायँ।

Next.png

संबंधित लेख

सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः