सहज गीता -रामसुखदास पृ. 26

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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चौथा अध्याय

(ज्ञान कर्म संन्यास योग)

[निःस्वार्थ भाव से केवल दूसरों के हित के लिए कर्तव्य-कर्म करने का नाम ‘यज्ञ’ है। यज्ञ से सभी कर्म अकर्म हो जाते हैं अर्थात् बाँधने वाले नहीं होते। अब भगवान् साधकों की रुचि, विश्वास और योग्यता की भिन्नता के अनुसार बारह प्रकार के भिन्न-भिन्न यज्ञों का वर्णन करते हैं-]

  1. ब्रह्मयज्ञ- जिस पात्र से अग्नि में आहुति दी जाए, वह भी ब्रह्म है; जिन पदार्थों की आहुति दी जाय, वे भी ब्रह्म हैं; आहुति देने वाला भी ब्रह्म है; जिसमें आहुति दी जा रही है, वह अग्नि भी ब्रह्म है और आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म है- इस प्रकार जिसकी संपूर्ण कर्मों में ब्रह्मबुद्धि हो जाती है, उसे ब्रह्म की ही प्राप्ति होती है। तात्पर्य है कि प्रत्येक कर्म में कर्ता, करण, क्रिया, पदार्थ आदि सबको ब्रह्मरूप से अनुभव करना ‘ब्रह्मयज्ञ’ है।
  2. भगवदर्पणरूप यज्ञ- संपूर्ण क्रियाओं और पदार्थों को केवल भगवान् का और भगवान् के लिए ही मानना।
  3. अभिन्नतारूप यज्ञ- असत् से सर्वथा विमुख होकर परमात्मा में लीन हो जाना अर्थात् परमात्मा से भिन्न अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना।
  4. संयम रूप यज्ञ- एकान्तकाल में अपनी इन्द्रियों को विषयों में प्रवृत्त न होने देना।
  5. विषय-हवनरूप यज्ञ- व्यवहारकाल में इन्द्रियों का विषयों से संयोग होने पर भी उनमें राग-द्वेष न होने देना।
  6. समाधिरूप यज्ञ- मन बुद्धिसहित संपूर्ण इंद्रियों और प्राणों की क्रियाओं को रोककर ज्ञान से प्रकाशित समाधि में स्थित हो जाना।
  7. द्रव्ययज्ञ- संपूर्ण पदार्थों को निःस्वार्थभाव से दूसरों की सेवा में लगा देना।
  8. तपोयज्ञ- अपने कर्तव्य के पालन में आने वाली कठिनाइयों को प्रसन्नतापूर्वक सह लेना।
  9. योगयज्ञ- कार्य की सिद्धि असिद्धि में तथा फल की प्राप्ति अप्राप्ति में सम रहना।
  10. स्वाध्यायरूप ज्ञानयज्ञ- दूसरों के हित के लिए सत्-शास्त्रों का पठन-पाठन, नाम-जप आदि करना।
  11. प्राणायामरूप यज्ञ- पूरक, कुम्भक और रेचक पूर्वक प्राणायाम करना। [श्वास को भीतर लेना ‘पूरक’, श्वास को भीतर रोकना ‘कुम्भक’ तथा श्वास को बाहर निकालना ‘रेचक’ कहलाता है।]
  12. स्तम्भवृत्ति (चतुर्थ प्राणायामरूप यज्ञ)- नियमित आहार लेते हुए प्राण और अपान को अपने-अपने स्थानों पर रोक देना।
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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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