सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय(ज्ञान कर्म संन्यास योग)सृष्टि रचना के समय मैं ही जीवों के गुणों और कर्मों के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र- इन चार वर्णों की रचना करता हूँ। पर इन सृष्टि रचना आदि संपूर्ण कर्मों का कर्ता होने पर भी मुझ अविनाशी परमेश्वर को तुम अकर्ता ही समझो। कारण कि मेरी कर्मों के फल में स्पृहा नहीं है, इसलिए मुझे कर्म बाँधते नहीं। ‘कर्तापन और फलेच्छा न होने पर भी भगवान् केवल कृपा करके जीवों को कर्म-बंधन से रहित करके उनका कल्याण करने के लिए ही सृष्टि-रचना आदि कार्य करते हैं’- इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्तापन और फलेच्छा का त्याग करके कर्म करता है, जिससे वह कर्मों से नहीं बँधता। अपनी मुक्ति चाहने वाले जो साधक पहले हो चुके हैं, उन्होंने भी इस प्रकार कर्तापन और फलेच्छा का त्याग करके अपने-अपने कर्तव्य कर्मों का पालन किया है और मोक्ष प्राप्त किया है। इसलिए तुम्हें भी उनकी ही तरह अपने कर्तव्य कर्म का पालन करना चाहिए।
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