सहज गीता -रामसुखदास पृ. 23

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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चौथा अध्याय

(ज्ञान कर्म संन्यास योग)

मैं संपूर्ण प्राणियों का ईश्वर (शासक) होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ और तरह-तरह की अलौकिक लीलाएँ करता हूँ। हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं लोगों को पतन में जाने से रोकने के लिए साकार रूप से अवतार लेता हूँ। भक्तों की रक्षा करने के लिए, पापियों का विनाश करने के लिए और धर्म की भलीभाँति स्थापना करने के लिए मैं आवश्यकता के अनुसार युग-युग में अवतार लिया करता हूँ।
हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म- दोनों ही दिव्य, अलौकिक हैं। जो मनुष्य मेरे जन्म और कर्म की दिव्यता को तत्त्व से जान लेता है अर्थात् दृढ़तापूर्वक मान लेता है, वह मृत्यु के बाद दोबारा जन्म न लेकर मुझे ही प्राप्त हो जाता है। [भगवान् संपूर्ण जीवों के हित के लिए ही अवतार लेते हैं और संपूर्ण क्रियाओं को करते हुए भी निर्लिप्त रहते हैं, ऐसे ही मनुष्य में भी संपूर्ण प्राणियों के हित का भाव हो जाय और उसके कर्मों में निर्लिप्तता (निष्कामभाव) आ जाय, -यही भगवान् के जन्म और कर्म को तत्त्व से जानना है।] नाशवान् वस्तुओं को अपना और अपने लिए न मानना ‘ज्ञानरूप तप’ है। इस ज्ञानरूप तप से पवित्र हुए तथा राग, भय और क्रोध से सर्वथा रहित, मुझमें ही तल्लीन और मेरे ही आश्रित हुए बहुत से भक्त मुझे प्राप्त हो चुके हैं। हे पार्थ! जो भक्त जिस प्रकार से, जिस भाव से, जिस संबंध से मेरी शरण लेते हैं, मैं भी उनके साथ उसी प्रकार से, उसी भाव से, उसी संबंध से बर्ताव करता हूँ। सभी मनुष्य मेरे मार्ग का अनुसरण करते हैं, इसलिए मनुष्य को चाहिए कि संसार में उसके साथ जो जैसा संबंध मानता है, वह भी उसके साथ वैसा ही संबंध मानकर निःस्वार्थभाव से उसकी सेवा करे। मेरा ऐसा उदार स्वभाव होने पर भी सब लोग मेरे शरण नहीं होते- इसका कारण यह है कि उनके भीतर अनेक तरह की सांसारिक कामनाएँ रहती हैं, जिन्हें पूरी करने के लिए वे मुझे छोड़कर देवताओं की उपासना किया करते हैं। कारण कि इस मनुष्यलोक में कर्मों में होने वाली तात्कालिक सिद्धि शीघ्र मिल जाती है।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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