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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तदश शतकम्
(ज्ञान-योगादि साधनों द्वारा लब्ध सूक्ष्मबुद्धि) महापुरुषों का मन भी जब श्रीवृन्दावन के महा महिमासागर की थाह को नहीं पा सकता, तब शास्त्र इस बारे में क्या जान सकते हैं? भगवान् (श्रीवासुदेव) ने इशारे से भक्त उद्धव को इस श्रीवृन्दावन की बात कही थी। अहो! रसोन्मद् श्रीयुगलकिशोर ने इस श्रीवृन्दावन को अपनी नित्य क्रीड़ास्थली के रूप में ग्रहण किया है इसके निगूढ़ तत्त्व को श्रीगौरांग महाप्रभु के आश्रय ग्रहण किये बिना कोई भी जानने को समर्थ नहीं है।।2।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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