विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पञ्चदश शतकम्
कालिन्दी के प्रस्फुटित कमलवन की वायु द्वारा मन्द मन्द सेवित श्रीवृन्दावन के मनोहर वृक्षलता मन्दिर के बरामदे में कोई इन्द्रनीलमणि की कांति विशिष्ट चन्द्र जय युक्त हो रहा है, वह अति मधुर स्फुरित अंग ज्योति द्वारा भी वन्दनशील देवगण के द्वारा की गई कुसुमधारा वर्षा से प्रमुदित होकर विराज रहा है।।103।।
यह श्रीमद्वृन्दावनचंद्र अतीव मधुर एवं प्रेमामृत सार क्षरणशील है, किंतु वह जब सम्यक् उद्दीप्त कामाग्नि में विकल हृदय होता है तब श्रीराधा ही उसको अगाध सुधासिन्धु रूप से शांनि प्रदान करती हैं।।103 क।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज