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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पञ्चदश शतकम्
जलबिंदुओं के द्वारा नष्ट हुआ तिलक फिर चंदन बिंदु एवं सिंदूर द्वारा मेरे कपोलों पर रचना करो। कुसुम द्वारा कुचयुगल पर पत्रक रचना करो। मेरे मधुर अधरों पर पूर्ववत सुन्दर भाव से उसी प्रकार चित्रकादि ठीक-ठीक विन्यास करो। मुझे सखियों से सदा भय लगा रहता है। अतएव हे वृन्दावनचंद्र मेरी लज्जा को दूर करो।।104।।
श्रीदाम प्रमुख प्रिय सखागणों के साथ जो एकमात्र श्रीराधा के कथा-परायण होकर जहाँ तहां विचरते हुए वृन्दारण्य की वीथिकाओं में उपस्थित रहते हैं, और फिर अधीर होकर श्रीराधा के साथ मिलने का उत्तम उपाय उनके साथ सोचते हैं, ऐसा जो कामरस का एकमात्र साररूप सुन्दर श्यामकिशोर हैं। उसका भजन करता हूँ।।105।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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