विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
प्रथमं शतकम्
हे श्रीमद् वृन्दाटवि! अति आश्चर्यजनक स्वाभाविक परमानन्छ-विद्या-रहस्य युक्त जो आपका स्वरूप है, उसकी मेरे हृदय में स्फूर्ति कराओ। पूर्ण ब्रह्मामृत के ही वर्णन करने में लज्जित होकर जब उपनिषद् “नेति नेति” पुकार रहे हैं, तब इस श्रीवृन्दावन की महिमा के विषय में और क्या कहा जाये? ।।3।।
जो स्थान श्री राधा कृष्ण के विलास-सौभाग्य से पूर्ण चमत्कारित्व-जनक है, जो स्थान महामाधुर्य का सार होने के कारण अतीव विस्मयकर है, जो स्थान श्रीहरि के श्रृंगार-रस की पराकाष्ठा का प्रतिपादक है, अप्राकृत एवं आस्वादनीय मुख्य उज्ज्वल रस के अशेष सौभाग्य से गौरवान्वित है, (अथवा उन्नत उज्ज्वल रस के द्वारा ही जो अशेष भाव से एक मात्र रमणीय एवं सौभाग्य-मण्डित है), ईश्वर सहित शेषादि देवतागण पर्यन्त जिसकी गुण राशि का वर्णन करते हुए पार नहीं पा सकते, ऐसे श्री वृन्दावन की मैं निशि दिन सम्यक् प्रकार से स्तुति करता हूँ।।4।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज