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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
मेरे गूण दोषों का विचार न करके महा शक्तिमय एवं नित्य असीम करुणादि अखिल-गुणशील श्रीवृन्दावन मुझे निश्चय ही अपने चरणों में स्थान देगा।।10।।
हे श्रीवृन्दावन! सब कुछ त्याग कर मैंने आपकी शरण ली है और आपके आगे क्षमा न किए जाने वाले कोटि-कोटि अपराध भी किए हैं। यहाँ मेरा और कोई आश्रय नहीं है, यदि राधापदारविन्द के आनन्द में उन्मत्त होकर आप मेरी रक्षा न करें, तो और मेरी कोई गति नहीं है, उपाय नहीं है।।11।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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