वृन्दावन महिमामृत -श्यामदास पृ. 441

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास

नवमं शतकम्

Prev.png
ययोः श्रीदम्पत्योः सहजनवकैशोरवयसोः
सुगौरश्यामांगच्छबिमरधुरलीला-लहरिभिः।
समस्तं श्रीवृन्दावनमतिरसोन्मत्तमभवत्
तयोरेवाश्वस्यं मम किमपि दास्यं रतिगृहे।।78।।

सहज नवकिशोर अवस्थायुक्त जिन सुगौर-श्यागांगय युगललिशोर की कांति की मधुर लीला तरंगों द्वारा समस्त श्रीवृन्दावन ही रसोन्मत्त हो रहा है, उनके ही रति-गृह में अनिर्वचनीय दास्य रस ही मुझे आश्वासन देने वाला हो।।78।।

वीभत्सं वपुरेतदत्र पतिताश्चेष्टाः समस्ता अपि
व्यालुप्य प्रकृतिं भजन् रसमयीमन्तस्तथैवाकृतिम्।
श्रीवृन्दाविपिनेऽत्यकिंचनतया यत्र क्व चावस्थितः
श्रीराधाचरणारविन्दमनिशं प्रेम्णा कदा राध्ये।।79।।

यह वीभत्स शरीर तथा इसकी जितनी चेष्टाएं हैं, वे समस्त विशेषभाव से त्याग कर, अन्तश्चिन्तित शरीर में रसमयी प्रकृति तथा आकृति की भजन-भावना करते हुए, श्रीवृन्दावन के किसी स्थान पर अति अकिञ्चन भाव से रह कर कब मैं निरन्तर श्रीराधा-चरणकमलों की प्रेमपूर्वक आराधाना करूंगा।।79।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. परिव्राजकाचार्य श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र 1
2. व्रजविभूति श्री श्यामदास 33
3. परिचय 34
4. प्रथमं शतकम्‌ 46
5. द्वितीय शतकम्‌ 90
6. तृतीयं शतकम्‌ 135
7. चतुर्थं शतकम्‌ 185
8. पंचमं शतकम्‌ 235
9. पष्ठ शतकम्‌ 280
10. सप्तमं शतकम्‌ 328
11. अष्टमं शतकम्‌ 368
12. नवमं शतकम्‌ 406
13. दशमं शतकम्‌ 451
14. एकादश शतकम्‌ 500
15. द्वादश शतकम्‌ 552
16. त्रयोदश शतकम्‌ 598
17. चतुर्दश शतकम्‌ 646
18. पञ्चदश शतकम्‌ 694
19. षोड़श शतकम्‌ 745
20. सप्तदश शतकम्‌ 791
21. अंतिम पृष्ठ 907

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः