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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
सहज नवकिशोर अवस्थायुक्त जिन सुगौर-श्यागांगय युगललिशोर की कांति की मधुर लीला तरंगों द्वारा समस्त श्रीवृन्दावन ही रसोन्मत्त हो रहा है, उनके ही रति-गृह में अनिर्वचनीय दास्य रस ही मुझे आश्वासन देने वाला हो।।78।।
यह वीभत्स शरीर तथा इसकी जितनी चेष्टाएं हैं, वे समस्त विशेषभाव से त्याग कर, अन्तश्चिन्तित शरीर में रसमयी प्रकृति तथा आकृति की भजन-भावना करते हुए, श्रीवृन्दावन के किसी स्थान पर अति अकिञ्चन भाव से रह कर कब मैं निरन्तर श्रीराधा-चरणकमलों की प्रेमपूर्वक आराधाना करूंगा।।79।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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