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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
मेरे हृदय में अविनश्वर महा माधुर्य-प्रवाही, पूर्ण-विशुद्ध रस उद्दीपक एवं मनोहर श्रीवृन्दावन तत्त्व प्रतिभात हो, तथा एकमात्र कन्दर्पलीला-रस की स्फूर्ति करने वाला श्रीवृन्दावनचन्द्र तत्त्व (श्रीकृष्णतत्त्व), परिपूर्ण रति-स्वरूपिणी विमला श्रीराधा आज मेरे मन में उदित हों।।76।।
अनन्तमाधुर्यपूर्ण, नव कैशोरवयस्क, महागौरश्यामवर्ण, अनन्त कांति-राशि के प्रकाशक, अनन्त वैदग्धी तथा अविचल अनन्त अनंग-कला-विलासादियुक्त अनुपम युगलकिशोर श्रीवृन्दावन में विचरण कर रहे हैं।।77।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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