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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
अहो! सौंदर्यराशि का महाचमत्कार, माधुर्य की शेष सीमा, लावण्यामृत चन्द्रिका के सागर की कोई एक वन्या, अति आश्चर्य महानुराग-सम्पत्ति, कन्दर्प-लीला की पराकष्ठा, नवीन कैशोरयुक्त मेरे दो देही एक प्राण स्वरूप (श्रीराधा-कृष्ण) श्रीवृन्दावन में विराजमान हैं।।70।।
श्रीवृन्दावन, ऐक्य भावमय अखण्ड-अनुराग से उन्मत्त हो रहा है, एकमात्र कन्दर्प-कला चमत्कार राशि महानन्द तरंगों द्वारा आन्दोलित हो रहा है, अद्भुत वयस, रूप तथा छवि एकमात्र विश्रांति-स्थल है, एक हृदय-प्राण गौरश्याम युगल-किशोर की मैं उपासना करता हूँ।।71।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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