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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
प्रतिदिन अत्यन्त वर्द्धनशील महाभक्ति व वैराग्ययुक्त कोई एक भाग्यवान पुरुष ही श्रीराधा-पदाश्रित होकर श्रीवृन्दावन में वास करता है।।66।।
श्रीराधा-कृष्ण के सुतत्त्व को जान लेने पर अनेक शास्त्राभ्यास जनित सब व्यर्थ श्रम दूर हो जाता है। श्रीराधा-चरण-कमल में अपने प्राणवत सहज एकांज समुज्ज्वल भाव से, हाय! तीव्र वेराग्य पूर्वक, देह ही रक्षा के लिए भी बिन्दुमात्र चेष्टा न करके, सकल-प्रिय कोई भाग्यवान पुरुष, श्रीधामवृन्दावन में वास करता है।।67।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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