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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
उस मण्डली में कोई एक गलित-स्वर्णवत वर्णशीला है, जो सौम्य की महा सुन्दर मूर्त्ति है, उसके प्रति अंग में अनन्त असीम स्निग्ध निर्मल गौरकांति स्फुरित हो रही है, वह मनोहर कैशोर मूर्त्ति है, युगलस्तनरूप स्वर्ण पद्मों को धारण करने वाली है, सुन्दर वस्त्र, कंचुकी तथा विचित्र हारावली को धारण कर रही है।।56।।
उसका मध्यदेश सिंह की भाँति अति कृश है, पृथुल कटि में विचित्र तरंगयुक्त साड़ी पहिर रही है, बाहु-लताओं में महा अद्भुत मणि, केयूर तथा चूड़ा आदि धारण कर रही है, कानों के ऊपर अद्भुत कर्णपूर तथा उनके नीचे वालियों की दिव्य छवि हैं, श्रीनासा तिलपुष्पवत् है तथा उसमें रत्न तथा स्वर्ण-जड़ित मुक्ता शोभायमान।।57।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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