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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
पूर्ण आस्वाद्य विशुद्ध भावयुक्त विग्रह श्रीयुगलकिशोर के अंग अंग से जो माधुर्यधारा प्रवाहित हो रही है, जो अद्भुत भंगिमा से अनेक प्रकार की अपार कांति हो रही है। नेत्र चंचल-चातुरी, मृदु-मधुर-हास्य-परिपाटी एवं परास्पर उनका जो गर्म मधुर निर्ज्जन संलाप है, उस समस्त की चित्त में चिन्ता कर ।।54।।
श्रीराधा जी के चरणकमलों की असीम मादक महाज्ज्योति की घनाकृति विशिष्ट, कोटि चन्द्रवदनी, आश्चर्य आकृति तथा बहुविध वर्णों से सुन्दरतापूर्ण, अत्यन्त आश्चर्यमय नाना कला युक्त अति नवीन यौवनपूर्ण तथा नानाविध विचित्र शक्ति धारण करने वाली राधादासी-मण्डल शोभित हो रही है।।55।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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