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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
व्रजविभूति श्रीश्यामदास
‘श्रीश्यामलाल हकीम’
श्रीमन्नित्यानंदप्रभु कृपा-करुणा
जैसा कि पूर्व में वर्णित है श्री श्यामदास जी की जन्म तिथि ईवसीय सननुसार 3 फरवरी सन 1921 है। पुराने पंचांग में जब यह तिथि देखी गयी तो यह तिथि है- माघ शुक्ला एकादशी। इस तिथि के ठीक एक दिन बाद माघ शुक्ला त्रियोदशी की श्रीमन्नित्यानन्द प्रभुपाद की जयन्ती तिथि होती है। श्री नित्यानन्द जयंती तिथि के आस-पास जन्म लेने वाले व्रजविभूति ‘श्री श्यामदास’ जी की श्री नित्यानन्द-परिवार में दीक्षा, यज्ञोपवीत, मुण्डन आदि संस्कार हुए। जीवन पर्यन्त श्री निताई चांद की करुणा कृपा बरसती रही। न जाने कब से आजीवन श्री नित्यानन्द प्रभु के सिद्ध स्थान श्रीश्रृंगार वट के ही एक मकान में रहे। आपके ज्येष्ठ पुत्र का नाम भी आपने रखा- नित्यानन्द। आपके तीनों सुपुत्र भी श्री नित्यानन्द परिवार में ही दीक्षित हैं और यह भी श्रीमन्नित्यानन्द प्रभु की कृपा का ही साक्षात् फल है कि इस शरीर की अन्तिम श्वांस भी आपने श्री नित्यानन्द प्रभु के सिद्ध स्थान श्री श्रृंगारवट से लायी हुई व्रजरज पर ली और अपना पार्थिक शरीर श्री श्रृंगारवट की व्रजरज को समर्पित किया। धन्य है निताई चांद तेरी अपार करुणा। सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो आपका सम्पूर्ण जीवन-चक्र ‘श्री नित्यानन्द प्रभुपाद’ की करुणामयी कृपा से ओत-प्रोत रहा। श्री श्यामदास जी से जब उनकी विपुल सेवा की चर्चा की जाती तो इसका श्रेय सदैव वे गुरुशास्त्र कृपा एंव श्री श्रीनिताई-गौर की दिव्य शक्ति को ही देते थे। वह कहते थे कि ‘मैं तो उनके हाथ की कठपुतली हूँ, जैसा वे मुझे नचा रहे हैं, वैसा ही मैं नाच रहा हूँ। ‘नाचेंगे हम तो नटवर जैसा हमें नचा लें।’ लीलाप्रवेशसन् 1985 से व्यवहार-व्यवसाय सभी लौकिक कार्यों से अनासक्त होकर आप बाग-बुन्देला स्थित अपने निवास पर ही एक छोटे से कमरे में अपने सात्त्विक साधन युक्त कार्यालय में मुख्य रूप से साहित्य सेवा एवं श्री विग्रह ठाकुर सेवा में विधिवत् व्यस्त रहते थे। लगभग 85 वर्ष की आयु में भी अति सक्रिय जीवन यापन करने वाले श्री श्यामदास जी की कभी अस्त व्यस्त न होने वाली दिनचर्या अचानक थोड़ी अव्यवस्थित हो गयी थी। धनतेरस दिनांक 30 अक्टूबर 2005 को उन्हें अत्यधिक ठंड लगी। जाँच में मलेरिया पाया गया और उचित चिकित्सा दी गयी। दीपावली वाले दिन लगभग स्वस्थ हो गये थे। अपने अधिकारी एवं कर्मचारियों को दीपावली की शुभकामनाऐं दीं आशीष दिया। दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव का आयोजन था, जो घर में ही प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी मनाया गया। लगभग 3 घंटे कैसियो बजाते हुए सस्वर संकीर्तन किया। प्रसाद पाया। रात्रि को बेचैन हुए और स्वास्थ्य बिगड़ता गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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