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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
नित्य, अद्भुत रसोत्सवों से पूर्ण नित्य मिलन व नित्य विरह दशायुक्त, नित्य नवीन, नित्य किशोर, एवं मोहिनी शोभायुक्त कोई अनिर्वचनीय गौर नीलात्मक युगलकिशोर श्रीवृन्दावन में मुझे लुभायमान कर रहे हैं।।46।।
जो विचित्र नवचातुरी के द्वारा विचित्र रति-उत्सव मनाते हैं, एवं विचित्र देहकांति कुंजो को विचित्रित करते हैं, वे विचित्र नवीन केशों को धारण करने वाले, विचित्र कैशोरयुक्त विचित्र युगलकिशोर मेरे मन को विचित्रित करें।।47।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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