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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
व्रजविभूति श्रीश्यामदास
‘श्रीश्यामलाल हकीम’
श्री गिरिराज कृपा
एक बार आपके मन में इच्छा हुई कि घर में पूजित श्री प्रिय-प्रियतम एवं गोपाल जी के श्री विग्रहों के साथ-साथ श्री गोविन्द ‘श्री गिरिराज’ रूप में विराजित हों और मैं उनकी सेवा-पूजा करूँ। श्री गिरिराज शिला खण्ड की निज मंदिर में सेवा पूजा का सामान्यतः सन्तों द्वारा निषेध है। श्री गिरिराज-निजधाम छोड़कर कहीं नहीं जाते - ऐसी मान्यता है। आप शीघ्र ही तत्कालीन सन्त प्रवर पं. श्री गया प्रसाद जी के पास गोवर्धन गये और अपनी भावना प्रकट की। पूज्य पंडित जी आपकी सेवा भावना निष्ठा से परिचित थे। तुरन्त उन्होंने कागज के दो छोटे टुकड़े लिये। एक पर लिखा- ‘यहीं विराजौ’। दूसरे पर लिखा ‘आज्ञा होय तौ चलौ श्री वृन्दावन।’ दोनों कागज पुड़िया बनाकर अपने एक सेवक को दिये और कहा कि ‘श्री गिरिराज के समझ इन दोनों पुर्जों को डालकर किसी व्रजवासी बालक से एक पुर्जा उठवाकर ले आओ।’ शीघ्र ही सेवक कागज का एक टुकड़ा ले आया। उस पर लिखा था ‘आज्ञा होय तौ चलौ श्री वृन्दावन।’ भक्त एवं भगवान् दोनों की साक्षात् स्वीकृति से आगामी दिन ब्राह्म मुहूर्त में श्री गिरिराज जी को स्वगृह में पधराया गया - सात्त्विक अभिषेक उत्सवादि से प्रभु प्रतिष्ठित हुए - जो आज पर्यन्त पूजित व सेवित हैं। सन्त-सज्जन-सत्कृपाप्रारम्भ से ही संतों से सत्संग, भगवच्चर्चा, आदि की आप में विशेष रुचि थी। भागवत निवास के बाबा श्री कृपासिंधु दास जी, श्रीतीनकौड़़ी महाराज, गो. श्री रासविहारी लालजी, गो. श्री विजय कृष्ण जी, श्री अखण्डानन्द सरस्वती जी, श्री गो. नृसिंह वल्लभ जी, श्री नित्यानंदजी भट्ट, श्री रामदास जी शास्त्री, श्री बिन्दु जी महाराज, श्रीकृष्ण दास बाबा कुसुम सरोवर, स्वामी श्री भक्ति हृदय बनमहाराज, जैसे अनेक सन्त एवं विद्वानों की आप पर सदैव स्नेहपूर्ण कृपा रही। गो. श्री अतुल कृष्ण जी, गो. श्री पुरुषोत्तम जी, श्री अच्युतलाल जी भट्ट, धर्मरत्न श्री स्वामी गोपाल शरण देवाचार्य जी, स्वामी श्री सत्यानंद जी, श्री श्रीवत्सजी गोस्वामी, श्री चैतन्य गोस्वामी, श्री वैरागी बाबा, श्री चन्द्रशेखर दास बाबा जी आदि से समय समय पर भगवत् चर्चा आदि का क्रम बना रहता था इनके अतिरिक्त प्रायः प्रतिदिन अनेक वैष्णव-जिज्ञासु भक्त-सज्जन भगवत् चर्चा हेतु आते रहते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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