विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
व्रजविभूति श्रीश्यामदास
‘श्रीश्यामलाल हकीम’
ग्रन्थ विक्रय राशि
पर्याप्त ग्रन्थ प्रकाशन कोष एवं स्टाॅक होने पर भी यह कोष अपर्याप्त ही रहता है। क्योंकि नवीन प्रकाशन हेतु एक विपुल राशि एक साथ चाहिये होती है। बिक्री तो 1-1 ग्रन्थ की होती है। अतः सामंजस्य में व्यवधान बना रहता है। ग्रन्थ विक्रय द्वारा प्राप्त हाने वाली राशि से न किसी का व्यवसाय चलता है, न यह राशि किसी की आजीविका का साधन है, न कोई वेतन दिया या लिया जाता है, न कोई किराया, बिजली और व्यवस्था सम्बन्धी व्यय किया जाता है। ग्रन्थ विक्रय से प्राप्त होने वाली राशि का एक-एक पैसा पुनः केवल ग्रन्थ प्रकाशन में ही व्यय किया जाता है। यही कारण है कि आज छोटे-बड़े एवं विशाल ग्रन्थ हर समय पाठकों हेतु उपलब्ध हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे। यह सब प्रभु-गुरु-वैष्णव वृन्द की कृपा का साक्षात् फल है जिसके परिणाम स्वरूप श्री महाप्रभु जी के साहित्य का प्रसार-प्रचार अबाध गति से हो रहा है। प्रतिवर्ष आय व्यय विवरण एवं एकाउण्ट्स तैयार होते हैं। सभी कार्य श्री श्याम दास जी के परिवारी जनों एवं अनुचरों द्वारा सेवा भाव से किये जाते हैं। श्री हरिनाम संकीर्तन सम्मेलनसन् 1956 से 1984 तक लगातार 25 वर्षों तक प्रतिवर्ष होली के अवसर पर आपने विशाल श्री हरिनाम संकीर्तन सम्मेलन का आयोजन स्थानीय बसन्तीबाई धर्मशाला में किया, जिसमें देश एवं ब्रज के सुप्रसिद्ध विद्वानों के प्रवचन, स्वामी श्री राम स्वरूप जी की मण्डली की रास लीला एवं स्वामी श्री हरि गोविन्द जी की मण्डली की श्री गौरांग लीला का त्रिदिवसीय भव्य आयोजन होता था। अन्तिम दिन विशाल शोभा यात्रा से यह उत्सव समाप्त होता था। यही एक मात्र ऐसा उत्सव था जो वृन्दावन में होली के अवसर पर होता था, बाद में ऐसे उत्सव अनेक होने लगे और ऐसे उत्सवों का व्यवसायीकरण हो जाने के कारण यह सम्मेलन 1985 से स्थगित कर दिया गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज