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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
सच्चिदानन्दघन-तृणगुल्म-वृक्षलतादि द्वारा, आवृत्त, आनन्द पुंजमय श्रीराधा-रति केलि-कुंजों से परिवृत्त, दिव्य, दिव्य सरोवर, नदी, गिरि आदि से शोभित दिव्य पक्षी-पशुओं से संचित्रित, एवं मनोहर गुंजनकारी भँवरों से विलसित श्रीवृन्दावन के मैं दर्शन करता हूँ।।93।।
अतिशय आनन्ददायक अनेक रत्नस्थली से अति अद्भुत रसोल्लासी प्रफुल्लित लता-श्रेष्ठ वृक्षों से सुशोभित, निरतिशय कालिन्दी के रस-प्रवाह से वेष्ठित श्रीवृन्दावन् का मैं ध्यान करता हूँ।।94।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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