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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
श्रीवृन्दावन के यमुनापुलिन में कदम्बवृक्ष के नीचे मणिमण्डल में प्रिय सखीवृन्द नर्म्म-परिहास के द्वारा एवं दिव्य माला, ताम्बूल, विलेपनादि के द्वारा नित्य ही रूपौदार्य-वयस से एवं विलास से मधुर विग्रह श्रीराधामुरलीधर की सेवा कर रही हैं, मैं उसी का ध्यान करता हूँ।।83।।
आनन्दघन-अमृत-सुरस-प्राहिनी कालिन्दी के किनारे कल्पवृक्ष के नीचे विराजित रत्नलतामय मधुर महा मण्डप में भूषित कलेवर श्रीयुगलकिशोर विचित्र तूल-गद्दो पर बैठे हैं, उनकी वयस, रूपलावण्यता, लीला वैदग्धी आदि के प्रवाह में समस्त सखीवृन्द और श्रीवृन्दावन मुग्ध हो रहे हैं, इस प्रकार श्रीयुगलकिशोर का स्मरण कर ।।84।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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