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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
आश्चर्यमय अनुपम सुकुमारता के परम आश्रय, अमृत की निन्दा करने वाले महामाधुर्य को प्रदान करने वाले गुणानिधि श्रीमुरलीधर के मनोरम युगल-चरण कमलों से अति कौतूहलाक्रांत श्रीवृन्दावन की भूमि में नित्य निवास कर।।59।।
महा चिन्ता-मणिमय स्थलों से युक्त, सुन्दर कर्पूरवत् चूर्ण द्वारा तथा पुष्पराग समूह द्वारा व्याप्त, लवमात्र स्पर्श करने से ही षड ऊर्म्मी अर्थात् शोक, मोह, जरा, मृत्यु क्षुधा तथा पिपासा को नाश करने वाले रस को प्रदान करने वाली श्रीवृन्दावन-भूमि को प्राप्त होकर सुखपूर्वक भव सागर से उत्तीर्ण हो।।60।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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