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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
अहो! श्रीराधामाधव के काम-कलास्वरूप सर्वधन का भण्डार समस्त पुरुषार्थां का प्रधान अवलम्बन स्वरूप ऋक् यजुः एवं सामवेद तथा श्रेष्ठ गुणों में जिसके अद्भुत यश कीर्त्ति वर्णन हो रहीं है और आश्रय ग्रहण करने वाले जीवों का सर्वस्वदान उनके पालन के व्रत का धारण करने वाला, समस्त दोषों करे क्षमा करने वाला, प्रेमरस में प्रीतिशील श्रीवृन्दावन शोभित हो रहा है।।36।।
यहाँ अखिल कार्य-कारण की कथा भी अत्यन्त लय को प्राप्त हो गयी है, यहा स्वयं प्रभामय वैभव-विशिष्ट-वस्तु वा चिदानन्दात्मक कुछ भी प्रकाशित नहीं होता, माधुर्य, सार के साथ कृष्णप्रेम-रसात्मक समस्त वैभवयुक्त यह श्रीवृन्दावन-नामक धाम सर्वोपरि विराजमान है।।37।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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