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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
आवृत्त स्वर्णकमल में अद्भुत मुकुलवत् मनोहर युगल स्तनों से वे शोभित हो रही हैं, उनका मध्यदेश (कटि) अति क्षीण है। उनके अति सुन्दर नवीन स्थूल नितम्ब, हैं, कांजी, मंजीर, मुक्ता माला, वलयादि व सुवर्ण कुण्डलों से शोभित हैं, शिर पर दिव्य सूक्ष्म ओढ़नी और परिधान में विचित्र साड़ी धारण कर रहीं हैं।।28।।
वे अपने प्रति-अंग की छटा से दशों-दिशाओं को आच्छादन कर रही हैं, कानों में दिव्य ताटंक (बाली) और उनके ऊपर विचित्र उज्ज्वल स्वर्णमय अवतंस धारण कर रही हैं। उन्मेषित यौवन शोभा से मधुर मदयुक्त महाश्चर्य लावण्यता से पूर्ण है, श्रीराधा-कृष्ण के परम अनुरागवश अवश हो रही हैं, पुलकित एवं अश्रुओं से सिंचित गौरवर्ण लताओं के समान प्रतीत होती हैं।।29।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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