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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीराधा-कृष्ण के सर्वाद्भुत रूप-माधुर्य एवं सर्वाद्भुत रसमयी लीला का एकांत स्थान में निरन्तर चिन्तन करते-करते माहभाग्यवश निरन्तर उज्ज्वल-रस की महाभावख्य श्रेष्ठ दशा को प्राप्त होकर, सर्व चेष्टाओं से विरत एवं सुखी होकर कोई भाग्यवान व्यक्ति ही श्रीवृन्दावन में वास करता है।।15।।
मेरे लिए यह पवित्र श्रीवृन्दावन-क्षुधातुर व्याक्ति के लिए सुन्दर मधुर अन्न के समान, प्यासे व्यक्ति के लिए सुशीतल जलवत्, धूप से तप्त पुरुष के लिए शीतल सरोवर के सदृश, दरिद्र के लिए महाधनराशि के तुल्य, योगियों के लिए परम ब्रह्मामृतवत्, एवं निखित प्राणियों के लिए जीवन तुल्य परम प्रियतम हो-यही मेरी प्रार्थना है।।16।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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