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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
अपनी उदारता से वांछित फलों को प्रदान करने वाले, एवं अगणित दिव्य दिव्य महावृक्षों को भी अति तुच्छ करने वाले, स्वानन्दमृत शुद्ध चिद्रसघन स्वरूप कुष्णनुराग से प्लावित तथा द्वन्दातीत श्रेष्ठ मुनिगणों से भी अभिवन्दित- इन श्रीवृन्दावन वृक्षराजों की मैं वन्दना करता हूँ।।17।।
जो स्वयं नित्य त्रिगुणमयी माया की विभूति के अपार समुद्र से पार उतरे हुए हैं एवं और सबको उसके पार करके उन्मादनकारी हरि-रस समुद्र में स्नान करा देते हैं, योगीन्द्रगणों के लिए भी जो दुर्लभ महापुरुषार्थ हौं- उनको जो वितरण कर रहे है- ऐसे प्रियतम श्रीवृन्दावन के वृक्षों का अनन्य प्रेम से भजन कर ।।18।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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