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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
हे मानव! मायामय-समुद्र के पार होकर किसी एक अनिर्वचनीय परब्रह्म की चिज्जयोति का आस्वदन करने के पश्चात् भगज्ज्योति के आनन्द-समुद्र को सन्तरण कर। इसी भगवदानन्द समुद्र में ही सुरम्य आश्चर्य श्रीविमल रस समुद्र को प्राप्त करके वहाँ अपने प्राणों का उपहार दान कर।।88।।
स्थूल, सूक्ष्म, कारण, तुरीय, श्रीवैकुण्ठधाम, श्रीकृष्णपुरी समूह (श्रीद्वारिका, मथुरादि) ब्रजलोक एवं सकल अनर्थ और विषयों को त्यागकर भाव-प्रवण दृष्टि से श्रीवृन्दावन के दर्शन कर ।।89।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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