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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
विष्टा, मूत्र, श्लेष्मा और पीवादि से पूर्ण स्त्री-नामक दुष्ट नरक के विषय में सुनकर भी उसे त्याग पूर्वक श्रीराधा के उपवन (श्रीवृन्दावन) में वास कर।।63।।
स्त्रीरूपा हरिमाया-हरिभक्ति को, वृन्दावन-प्रीति को एवं विवेक वैराग्यादि को दूर फैंक देती है। उससे बचने का उपाय यही है कि उससे दूर रहना चाहिए।। 64।।
स्त्री जाति का दर्शन ही दुष्ट मदिरा के समान उन्मत ही कर देता है। इस वृन्दावन में वास करना भी बहुत असाध्य है हा श्रीवृन्दावन! मेरे लिए क्या उपाय है।।65।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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