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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
अगणित प्रभावशील महाभाव के अनुभव को दान करने वाले एवं श्रीगौरश्याम युगल किशोर के अविचल कन्दर्पकेलि स्थल श्रीवृन्दावन का भजन कर।।60।।
इन्द्रियों के अति वशीभूत हुए और सर्व प्रकार से शोचनीय मुझको श्रीराधा केलिवन यदि अंगीकार करें, तो मैं महा कृतार्थ हो जाऊँगा।।61।।
कोटि-कोटि दुर्बुद्धि आवें अथवा कोटि-कोटि दुश्चेष्टाएँ हो जाएँ या कोटि-कोटि अपयश ही क्यों न हो जाएँ, तथापि हे श्रीवृन्दावन! मुझे आपका विरह कभी न हो- यही मेरी प्रार्थना है।।62।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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